क्या सेल्फी स्वार्थपूर्ण होती है?
सोशल मीडिया में वृद्धि होने के साथ-साथ सेल्फी लेने का प्रचलन भी बढ गया है; ऐसा इसलिए क्योंकि अब अपने सभी मित्रों के साथ छायाचित्रों को साझा करना पहले से कहीं अधिक सरल हो गया है । तब से, लोगों को पर्यटनस्थलों और दैनंदिन जीवन में सेल्फी लेते देखना नित्य की बात हो गई है ।” मैं कैसे इस सुंदर दृश्य के साथ अपने छायाचित्र ले सकता हूं, जिन्हें मैं उन्हें अपने मित्रों को दिखा सकूं ?, इससे फेसबुक पर मुझे कितने लोग पसंद करेंगे ?” इस प्रकार के प्रश्न हम में से अधिकांश लोगों के मन में आते रहते है । प्रायः हम वास्तविक दृश्य के स्थान पर किसी सुंदर दृश्य के साथ एक अच्छी सेल्फी लेने में अधिक रुचि रखते है । इसमें वृद्धि होने के परिणामस्वरुपअसामान्य घटनाएं भी घटित हो रही हैं । जिनमें कुछ हास्यप्रद हैं, तो कुछ अधिक गंभीर।
उदाहरण के लिए, हाल ही में एक पर्यटक पुर्तगाली संग्रहालय में 18 वीं सदी के एक पुतले के साथ सेल्फी लेने हेतु अपनी स्थिति/मुद्रा बनाते समय पीछे जाकर गलती से उसपर गिर गया तथा उसने उसे सदा के लिए क्षतिग्रस्त कर दिया।
दूसरी ओर कुछ लोग तो बहुत ऊंचाई से सेल्फी लेनेके प्रयास में अपना जीवन भी खो चुकेहैं ।
स्वाभाविक रूप से, लोगों ने यह प्रश्न करना आरम्भ कर दिया है कि क्या यह प्रवृति हानिरहित हैअथवा सेल्फी लेने के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।
सेल्फी लेने का आध्यात्मिक प्रभाव
जब हम सेल्फी लेते हैं और उसे सामाजिक माध्यमों (सोशलमीडिया) पर साझा करते हैं तो हम अपने बारे मेंअधिक सोचते है और दूसरों के बारे में कम। “कौन से कोण से मेरा मुख पतला दिखेगा ?”, “दूसरों को पता होना चाहिए कि मैं कैनकन में छुट्टियां मना रहा हूं” तथा “मैं सर्वाधिक ध्यान कैसे आकर्षित कर सकता हूं?” आरंभ से ही, ऐसे विचार व्यक्ति के मन में आते हैं । सामाजिक माध्यमों (सोशलमीडिया) पर सेल्फी डालने के पश्चात मन में इस बारे में अधिक विचार आ सकते है कि क्या वह उसके मित्रों को पसंद आएगी अथवा नहीं और इसी के बारे में सोचकर और चिंता कर अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ कर सकते है ।
यदि पोस्ट किए छायाचित्र को अधिक लोगों द्वारा पसंद किया जाता है, तो व्यक्ति के अहंकार में भी वृद्धि हो सकती है । इसके विपरीतपोस्ट/छायाचित्र को अच्छा प्रतिसाद नहीं प्राप्त होने पर नकारात्मक विचार बढ सकते है। दोनों प्रकार की विचार प्रक्रियाएं अहंकार की अभिव्यक्तियां हैं । स्वभावदोष निर्मूलनऔर अहं निर्मूलन प्रक्रियाएं हमारी साधना में महत्वपूर्ण चरण हैं; क्योंकि अपने दोष और अहं को न्यून करने पर ही हम ईश्वर को अनुभव कर सकते है । चूंकि सेल्फी लेने से हमारे दोष और अहं में वृद्धि होती है, फलस्वरूप इससे हमारी स्वभावदोष निर्मूलन और अहं निर्मूलन प्रक्रिया में बाधाएं उत्पन्न हो सकती है ।
इसके अतिरिक्त सेल्फी से हमारी पञ्चइंद्रियों, मन और बुद्धि में आसक्ति बढ सकती है । फलस्वरूप यह हम अपने जन्म के उद्देश्य, जो कि अपने भीतर विद्यमान आत्मा अथवा ईश्वर को अनुभव करना है, उससे दूर जाते हैं ।
अंतिमतः, सेल्फी से हमारे दोष और अहं में वृद्धि होती है । परिणामस्वरूप यह हमें अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है । (अधिक जानकारी के लिए कृपया अनिष्ट शक्तियों पर हमारा लेख देखें ।)
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